रविवार, अगस्त 21

हे सघन जल मेघ
बरसो उमड कर, कोश कर दो शेष
रिक्तियों के अन्त तक के गर्भ मे तुमको है जाना
यह धरा प्यासी युगों से, लौह इसके अंग मे अब बस गया है
एक मरुथल की सी छवि का कोई शर आकर ह्र्दय मे धंस गया है
पत्तियों पर शुष्क बून्दे निर्वसन सी नाचती है
ज्यों कपोलो पर धरा के अश्रु से झर के गिरे थे
उस महोदधि से ही तो तुम लाये हो पानी
जिस मदोन्मत कोश को पृथ्वी ने त्यागा
बांध दी सीमायें उसकी, उस कथित पौरुष की
जिसने जकड कर रखा था युग से, कल्प से
और अब भी कर चुकाया कर रहा वह महासागर
हे पयोधर तुम उसी जलनिधि के निकटतम दूत ही तो
क्या सन्देशे भेजता वह मानिनी प्रथ्वी को निवेदित?
दिनोदिन चढता ज्वार के आने के दिन तक
और फिर अस्ताचल को जैसे सूर्य हो जाते पराभूत
वैसे ही लाघव को, पूरा स्‍वयम्‌ ही करता पयोनिधि
देह छू उस यौवना की लौट जाता गेह मे निज चिर वियोगी
हे वारिवाहन आये क्या तुम फिर वही आशाओं का दीपक जलाने
रश्मियों को रोक कर सूरज की क्या निपट एकान्त तुमको चाहिये?
बूंद के आघात से करते क्या निवेदन, इस निपट भोली धरित्री से दिवसनिशि?
थामकर बैठा है सागर देखता सा पंथ तेरा उस समय से
जब कि तेरे पितृ पूर्वज जन्म भी पाये न थे/
और अब भी सामने उसके वही दुर्दम्य सा सागर उच्‍छ्रंखल
बद्ध जिस के उर्मिलों मे चिर प्रतीक्षा बून्द के लघुतम कणों सी
हे जलद तुम बरस कर कब तक कहोगे ये सन्देशे मौन के
कब तक लिखेगा यह वियोगी भाव मन के?
और पढवाती रहेगी धरा उनको अपने वृक्ष गुल्मों और त्रण से//

सोमवार, अगस्त 15

भारति जय विजय करे,
कनक शस्य कमल धरे/
लंका पदतल शतदल, गर्जितोर्मि सागर जल
धोता शुचि चरण युगल, स्तव कर बहु अर्थ भरे/
तरु तृण वन लता वसन, अन्चल मे खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल कण, धवल धार हार गले/
मुकुट शुभ्र हिम तुषार. प्राण प्रणव ओंकार
मुखरित दिशायें उदार, शतमुख शतरव मुखरे/
महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला"
स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक बधाई/
सत्ता की गलियों में कीचड है पैसे का
नीति की परिस्थिति वृद्धा सी डगमगाई
उजडी सी गलियों को रोते से गांवों को
वित्त की व्यवस्था ने जीभ सी चिढाई
गोल गोल सिक्कों ने कर दिया है "रैशनल"
तुमने ये देश की बात क्यूं चलाई
सपनों मे यू एस ए, बातों मे राष्ट्रवाद
आजकल मदारी ने ऐसी कसम खाई
कागज़ों पे स्याही लीप और बोल अंग्रेज़ी
हमने भी गांव में नयी हवा चलाई
चाशनी में तर गलियां, नेता के आसपास
इस नये धन्धे मे मलाई ही मलाई
उल्टी है परिभाषा उलझे हैं राजकाज
कौन ये सोचे कैसे ये घडी आई
स्वाधीनता दिवस पर हार्दिक बधाई