सोमवार, अगस्त 15

भारति जय विजय करे,
कनक शस्य कमल धरे/
लंका पदतल शतदल, गर्जितोर्मि सागर जल
धोता शुचि चरण युगल, स्तव कर बहु अर्थ भरे/
तरु तृण वन लता वसन, अन्चल मे खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल कण, धवल धार हार गले/
मुकुट शुभ्र हिम तुषार. प्राण प्रणव ओंकार
मुखरित दिशायें उदार, शतमुख शतरव मुखरे/
महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला"

1 Comments:

Blogger RAM LAKHARA said...

Nice blog Bhaskar ji. And your poems are also good.

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12:56 am  

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